प्यार और शादी
सही ग़लत के बीच
ज़िंदगी की उलझन है
सही समझ नहीं आता
ग़लत ख़ुदको बताना नहीं चाहता
प्यार इसको परिभाषित कर सकूँ इतनी मेरी औकात कहाँ लेकिन जितना मैं समझा हूँ उतना जरूर साझा कर सकता हूँ कि प्यार एक अनुभूति है - "जो हमे किसी के पास रहने की वजह देती है चाहे वो इंसान हो, जानवर हो, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, हरियाली, नदी, तालाब, झरने, या कोई भी निर्जीव या सजीव वस्तु" हमे उसकी इज़्ज़त करने की वजह देती है या इसके प्रतिकूल |
"प्यार के
लिए एक-मात्र जरुरी
है वो है एक-दूसरे के लिए अनुभूति
होना जो उन्हें बिना
किसी बंधन के लिए
साथ रहने के लिए
पर्याप्त रूप से प्रेरित
कर सके"
प्यार हम करते है, करना चाहते है और जिससे करते है उससे भी बदले में चाहते है लेकिन जिससे हम नहीं करते वो करे या ना करे कोई फर्क नहीं पड़ता हमे |
शादी "की नहीं
तो क्या हुआ बारातें
काफी देखी है" - तो
इसी अनुभव से जो मैं
समझा हूँ वो समझाने
का प्रयास जरूर करूंगा कि
शादी दो इंसान के
बीच ही नहीं बल्कि
दो परिवारों के बीच जुड़ने
वाला सम्बन्ध है
प्यार
हो या ना हो
इस बात पर शादी
नहीं होती | प्यार, शादी करने की
एक वजह मात्र हो
सकता है लेकिन सिर्फ
प्यार है इसलिए शादी
हो ये तो आज
की पीढ़ी भी नहीं
अनुभव करती है | इसे
दूसरे शब्दों में कहूं तो
- "शादी करते समय जो
वजह देखी जाती या जरुरी होती
है उनमें प्यार एक वजह मात्र
है, शादी का बंधन
जिस नींव पर खड़ा
किया जाता है उसमें
कई स्तम्भ होते है जिनमें
प्यार एक स्तम्भ है
जोकि ऐच्छिक होता है"
शादी
के बंधन के स्तंभ
व्यक्ति पर निर्भर करते
है जो उस पुरे
प्रसंग में संयुक्त है
जैसे कि -
१.
लड़की के माता-पिता
के स्तंभ - लड़का उनकी लड़की
के समान दिखने में
योग्य होना चाहिए, अच्छा
कमाने वाला होना चाहिए,
व्यबहार कुशल होना चाहिए
जिसकी जानकारी वो उसके आसपास
और अपने आसपास के
समन्वय कराने वाले व्यक्ति से
लेते है | घर परिवार
अच्छा होना चाहिए जो
हमारी प्रतिष्ठा को ऊँचा करे
या बनाये रखे | लड़के
की माँ का स्वभाव
भी उतना ही जरुरी
है जितना लड़के का | लड़के
में कोई भी बुरी
संगत या आदत ना
हो |
२.
लड़के के माता-पिता
के स्तंभ - लड़की उनके लड़के
के समान दिखने में
योग्य होनी चाहिए, व्यवहार
कुशल होनी चाहिए जिसकी जानकारी वो उसके आसपास
और अपने आसपास के
समन्वय कराने वाले व्यक्ति से
लेते है | लड़की घर
के कामों में निपुण होनी
चाहिए | घर परिवार अच्छा
होना चाहिए जो हमारी प्रतिष्ठा
को ऊँचा करे या
बनाये रखे | लड़की में कोई
भी बुरी संगत या
आदत ना हो |
३.
लड़की/लड़का - हर कोई अपने
योग्य दिखने वाला व्यक्ति चाहता
है, इनके लिए सबसे
जरुरी है कि व्यवहार
कैसा है और उसी से
प्यार परिभाषित होता है परस्पर
संबंधों में | लड़की चाहे खुद
अपना जीवन-यापन करने में
योग्य हो परन्तु लकड़ा
भी चाहिए कि अच्छा धन
अर्जित करता हो जोकि
उचित है, लड़का अपनी
जरूरत के हिसाब से
चयन करता है कि
सिर्फ पारिवारिक हो या साथ
में अपना जीवन जीने
योग्य धन भी अर्जित
करती हो | इनके लिए
परिवार से सम्बंधित जिज्ञासा
नहीं होती है कि
परिवार कैसा है, माता-पिता का व्यबहार
कैसा है थोड़ा बहुत
लड़कियों मैं माँ को
लेकर होती है |
शादी
के सम्बन्ध को जोड़ने के लिए इन सभी स्तम्भों में प्यार कहीं जरुरी प्रतीत नहीं हुआ
किसी के लिए भी | जो थोड़ा बहुत है वो व्यवहार जरुरी है जिसको भी पूर्णतः आधार नहीं
बना सकते है |
निश्चित
ही आज की युवा पीढ़ी इन दो अलग-अलग चीजों में अपने आप को अस्पष्ट ही पाती है | उन्हें
लगता है कि शादी के लिए पहले प्यार होना ही सबसे जरुरी है परन्तु ये कतई नहीं है |
जरुरी नहीं जिससे प्यार किया है उसके साथ शादी के बंधन में बंधने योग्य बात हो | और
यही मात्र वजह है जहाँ सालों से जो प्यार के रिश्ते होते है वो शादी की बात पर बिखर
जाते है क्यूंकि प्यार करते समय हम सिर्फ इंसान को व्यवहार पसंद करते है जोकि निश्चित
नहीं वैसा ही कब तक रहेगा | व्यवहार, परिस्थिति का दास होता है जिसमें कोई अनुचित नहीं
होता है अगर एक दृश्टिकोण से देखा जाये तो क्यूंकि व्यवहार, भावनाओं पर निर्भर करता
है और भावनायें समय/परिस्थिति के अनुरूप बदलती रहती है, इस बात को एक उदाहरण से समझते
है - "कहाँ जा रहे हो?" ये अगर ऐसा
व्यक्ति पूछे जिसके प्रति आपकी भावना है कि ये पूछे, जैसे आपकी लकड़ा/लड़की मित्र जो
आपसे पूछे तो आप प्रफुल्लित होकर जवाब देंगे वरना आप चिढ़-चिढ़ा अनुभव करेंगे | इसलिए
प्यार अस्थिर होता है जो कभी भी कम या ज्यादा हो सकता है ये निर्भर करता है आप उसके
लिए कितने नियतात्मक है, आप उसे संजोय रखने के लिए कितना प्रयास करना चाहते है | इसलिए
शादी के सम्बन्धो को सिर्फ प्यार आधार बनाकर कभी नहीं शुरू करने की सलाह अनुभबी लोग
देते है |
कृष्ण
ने भी प्यार और
शादी को सरलता से
समझाया है जो मनुष्य
के जीवन का सबसे
जटिल अनुष्ठान होता है | कृष्ण
ने प्रेम राधा से किया
और शादी रुक्मणी से
की, यही समझाने के
लिए कि प्रेम की
अपनी जगह है और
शादी के बंधन की
एक अपनी | वरना वो चाहते
तो शायद प्रेम और
शादी एक ही व्यक्ति
से कर सकते थे
|
राम ने भी यही समझाया है कि शादी से पहले प्रेम हो तभी शादी हो जरुरी नहीं है शादी के बाद भी प्रेम होता है |
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